अमरूद

Horticulture Guruji

अमरूद

फल विज्ञान

उष्णकटिबंधीय सेब, जाम

वानस्पतिक नामPsidium guajava

कुल  – Myrtaceae

उत्पत्ति – उष्णकटिबंधीय अमेरिका (मेक्सिको से पेरू)

गुणसूत्र संख्या – 22

पुष्पक्रम – एकान्त (Solitary)

खाने योग्य भाग – थैलेमस और पेरिकारप (Thalamus & Pericarp)

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महत्वपूर्ण बिन्दु 

  • अमरूद क्लाइमेक्टेरिक फल (climacteric fruit) है।
  • अमरूद एक दिन-तटस्थ (day-neutral) पौधा है
  • यूपी में अधिकतम क्षेत्रफल और उत्पादन होता है।
  • अमरूद एंटोमोफिलस (कीट परागित) होता है
  • उसी मौसम की वृद्धि पर फल एक्सिलरी (axillary) लगते है।
  • 1907 में पुणे में अमरूद सुधार कार्य शुरू हुआ।

अमरूद में बहार

बहार

पुष्पन

फलन

गुणवता

अम्बे बहार

फरवरी-मार्च

जुलाई- सितंबर

पानीदार और घटिया

मृग बहार

जून जुलाई

नवंबर – जनवरी

अति उत्कृष्ट

हस्त बहार

अक्टूबर

फरवरी – अप्रैल

अच्छे पर उपज कम

  • दक्षिण भारत में 3 बार फलन होता है।
  • मई और जून को छोड़कर पूरे साल अमरूद की फसल होती है।
  • चीनी अमरूद – पी. फ्रिड्रिचस्थलियानम ( fridrichsthalianum)- बौना मूलवृंत है और अमरूद विल्ट और नेमाटोड के लिए प्रतिरोधी भी।
  • उच्च सघन रोपण TSS, चीनी और एस्कॉर्बिक एसिड को कम करता है लेकिन अनुमापनीय अम्लता (titrated acidity) को बढ़ाता है।
  • एल-49, इलाहाबाद सफेदा की तुलना में ब्रोंजिंग (Bronzing)के लिए अधिक संवेदनशील होता है।
  • सर्दियों की फसल में फल गुणवत्ता सबसे अच्छी होती है, यह फल मक्खियों के हमले से बच जाती है।
  • वर्षा ऋतु की फसल के स्थान पर जाड़े की फसल लेने की प्रथा फसल नियमन (crop regulation) कहलाती है।
  • बरसात के मौसम की फसल को, इलाहाबाद सफेदा पर अधिकतम फूल अवधि के समय यूरिया के 10% और लखनऊ-49 में 20% का छिड़काव करके हटाया जा सकता है।
  • उत्तम गुणवत्ता वाले फल उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के होते है
  • परिपक्व अवस्था में फलों के छिलके में विटामिन ई सबसे अधिक होती है।
  • अमरूद विल्ट (Wilt) क्षार मिट्टी में (alkali soils) अधिक होता है।
  • बौना मूलवृन्त – अनुएप्लोइड – 82 (Aneuploid – 82)
  • अमरूद में झुकना (bending) MH में की जाती है
  • स्कर्वी रोग से बचने के लिए मानव आहार में उपयोगी होता है
  • पेक्टिन (pectin) का समृद्ध स्रोत होता है
  • जगह के क्षैतिज उपयोग के लिए अमरूद में मेढ़ो ऑर्चर्डिंग (Meadow orcharding) तकनीक विकसित की गई थी।

किस्में (Varieties)

  • लखनऊ – 49 (सरदार) – डॉ. चीमा द्वारा पुणे में 1927 में इलाहाबाद सफेदा से chance seedling से तैयार किया गया।
  • इलाहाबाद सफ़ेदा
  • हाफसी – लाल गूदे वाला अमरूद
  • चित्तिदार – लाल रंग के बहुत से बिन्दु फल के ऊपर
  • हरिझा – बिहार की प्रसिद्ध किस्म
  • एप्पल कलर
  • बेहाट कोकोनट– बीज रहित किस्म
  • अर्का मृदुला – इलाहाबाद सफेदा से नरम बीज वाली किस्म का चुनाव किया गया है।
  • इलाहाबाद सुर्खा – एक जैसा गुलाबी रंग का गुद्दा
  • इलाहाबाद राउंड – Parthenocarpic किस्म
  • सहारनपुर सीडलेस
  • नागपूर सीडलेस
    अमरूद
    अमरूद
  • अर्का अमूल्या – अर्का सफेद x seedless
  • हिसार सुरेखा
  • ललित – इलाहाबाद सफेदा से 24 % अधिक उपज
  • . जैली बनाने के लिए उपयुक्त
  • श्वेता – अधिक TSS (140 ब्रीक्स)

संकर (Hybrid)

  • कोहिर सफेद– कोहिर x इलाहाबाद सफेदा
  • सफेद जाम – इलाहाबाद सफेदा X कोहिर
  • पूसा सृजन – बौना मूलवृंत

जलवायु

  • अमरूद को उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • इसके फूल आने और फलने के समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है।
  • उपयुक्त वर्षा 1000 से 2000 मिमी है।
  • उपयुक्त तापमान 230C से 280C है।
  • अमरूद समुन्द्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जाता है ।

मिट्टी

  • हल्की बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी तक।
  • जलभराव की स्थिति के प्रति संवेदनशील होता है।
  • पीएच – 5 – 8.5

प्रवर्धन

  • अमरूद मुख्य रूप से एयर लेयरिंग और स्टूलिंग / टीले लेयरिंग के माध्यम से प्रवर्धन होता है।
  • एयर लेयरिंग का उचित समय बारिश का मौसम है।

रोपण

  • मानसून की शुरुआत से पहले 75 – 100 सेमी3 आकार के गड्ढे खोदे जाते हैं।
  • रोपण का सबसे अच्छा समय मानसून की शुरुआत (जून-जुलाई) होता है।
  • रोपण की दूरी 5×5 मीटर या 6×6 मीटर रखी जाती है।

खाद और उर्वरक

  • मृग बहार की फसल लेने के लिए अमरूद की फसल में फलों की कटाई के बाद मई तक सिंचाई बंद कर दी जाता है।
  • गोबर की खाद और उर्वरक जून के दौरान डाली जाती है और उसके बाद बारिश होने तक सिंचाई की जाती है।
  • प्रथम वर्ष N:P:K, 50:40:50 ग्राम/पेड़
  • 7 वर्ष और उससे अधिक – 350: 280: 350 ग्राम/पेड़

सिंचाई

  • प्रथम रोपण के ठीक बाद।
  • फलों के पेड़ों में, फूल आने और बेहतर सेटिंग के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • यदि सिंचाई के माध्यम से मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए नहीं रखी जाती है तो फलों का आकार छोटा रह जाता है।

अंतर शस्य

  • अमरूद के पौधों की देखभाल कभी-कभी हाथ से खुदाई कर की जाती है।
  • कुछ सब्जियों की फसलें अमरूद के बागों में भी उगाई जा सकती हैं जैसे बैंगन, भिंडी, चुकंदर, मूली आदि।

ट्रेनिंग और प्रूनिंग

  • पौधों का प्रारंभिक अवस्था में शीर्ष हटा दिया जाता है तो वे कुछ पार्श्व शाखाएं उत्पन्न करते हैं जिनमें से 2 या 3 को बढ़ने दिया जाता है और अन्य को हटा दिया जाता है।
  • इन शाखाओं से प्रत्येक से 2 या 3 मजबूत द्वितीयक शाखाओं को बढ़ाया जाता है फिर इन द्वितीयक शाखाओं से निकलने वाली तृतीयक शाखाओं को फैलने दिया जाता है
  • फलन वाले पेड़ों को सालाना सितंबर-फरवरी में हल्के से काटा जा सकता है।

मृग बहार के लिए अमरूद में फूल और फलने का नियमन करने के लिए

पूरे भारत में, मृग बहार को अम्बे बहार और हस्थ बहार की तुलना में पसंद किया जाता है। इसलिए, फूलों को विनियमित करना आवश्यक हो जाता है ताकि मृग बहार भारी फूल पैदा कर सके और सर्दियों में फल उपलब्ध हो सकें।

  1. सिंचाई के पानी को प्रतिबंधित करने के लिए (To restrict irrigation water)

  • फरवरी से मध्य मई तक सिंचाई बंद कर दें।
  • ऐसा करने से पेड़ गर्मी के मौसम (अप्रैल से मई) के दौरान अपने पत्ते गिरा देता है और आराम करने चला जाता है।
  • आराम के दौरान पेड़ अपनी शाखाओं में भोजन को संरक्षण कर लेता हैं।
  • जून के महीने में सिंचाई के बाद पेड़ की अच्छी तरह से गुड़ाई कर खाद दी जाती है। 20-25 दिनों के बाद पेड़ खूब खिलता है।
  1. जड़ों को प्रकाश लगाना (To expose roots): –

तने के चारों ओर की ऊपरी मिट्टी (लगभग 45 से 60 सेमी त्रिज्या में) को सावधानी से हटा दिया जाता है ताकि जड़ें सूर्य के संपर्क में आ जाएं और ऊपरी मिट्टी में नमी कम हो जाये, जिससे पत्ती गिर जाती है। और पेड़ आराम करने चला जाता है। लगभग 3 -4  सप्ताह के बाद उजागर जड़ों को फिर से मिट्टी से ढक दिया जाता है, खाद दिया जाता है, और पानी दिया जाता है

  1. फूल कलियों को हटा कर (To do deblossoming)

50ppm नेफ़थलीन एसिटामाइड (NAD) फूल कलियों को हटाने के लिए सबसे प्रभावी है, फूल कलियों को हाथों से भी हटाया जा सकता है

शाखा मोड़ना (bending)

ऐसे पेड़ जिनमें शाखा सीधे बढ़ते हैं और कम फलन होता है। इस तरह की शाखाओं को झुकाया कर/मोड़ा कर और जमीन में गाड़े गए खूंटे पर बाँधा जा सकता है। ऐसा करने से सुप्त कलियाँ सक्रिय हो जाती हैं जिनमें फूल और फल लगते हैं।

तुड़ाई

  • बीज प्रवर्धित पौधे 4 से 5 वर्ष में फल देने लगते हैं। जबकि वानस्पतिक विधियों से तैयार में 2 से 3 वर्ष का समय लगता है।
  • अमरूद के फलों को पूर्ण खिलने से लेकर परिपक्वता तक 22 सप्ताह (लगभग 5 महीने) का समय लगता है।
  • जब फल का रंग गहरे हरे से पीले-हरे रंग में बदल जाता है।
  • खाने के लिए पके या आधे पके फल पसंद किए जाते हैं।

उपज

150 – 200 किग्रा / वृक्ष

कीट नियंत्रण

  1. Guava Fruit fly (Dacus dorsalis)

मानसून के दौरान खतरनाक। मक्खी फल की सतह पर अंडे देती है। हैचिंग के बाद, युवा मैगॉट्स फल में प्रवेश करते हैं और नरम गूदे को खाते हैं।

नियंत्रण उपाय

  • सभी प्रभावित फलों को इकट्ठा करके अच्छी तरह जला दें।
  • गर्मी के महीनों के दौरान पेड़ के चारों ओर मिट्टी की खुदाई करें।
  • अंबे बहार की फसल लेने से बचें।
  • मैलाथियान 05% या लैबासिड 0.05% का छिड़काव करें

 

  1. Mealy bug

ये कोमल पत्तियों और फूलों से रस चूसते हैं।

नियंत्रण

  • पेड़ के आधार की मिट्टी को थीमेट 10 ग्राम या फॉस्फेट 10g  से उपचारित करें।
  • पॉलीथिन फिल्म की पेड़ के तने पर पट्टी बांधे जिससे  निम्फ ऊपर न चढ़ सके।
  • 1% मेटासिड का स्प्रे करें।
  1. Bark eating caterpillar (Arbela tetraonis)

  • कीट ढीली छाल के नीचे अंडे देती है और अंडे निकली सुंडी तने और छाल में छेद करती है।

नियंत्रण

  • सुंडी को छेदों से तार की सहायता से बाहर निकालने का प्रयास करें और उसे नष्ट कर दें।
  • मिट्टी का तेल या पेट्रोल डालें और छेद को रुई से भर दें।

 

रोग नियंत्रण

  1. Wilt (Fusarium solani, Macrophomina phyascolina)

  • पत्तियों का पीला पड़ना और उसके बाद सिरे से पत्तियाँ और टहनियाँ सूखना और बाद में पेड़ मुरझाने लगते हैं।
  • बारिश के मौसम में और क्षारीय मिट्टी में यह अधिक होती है।

नियंत्रण

  • स्वस्थ पौधों में 1% 8-क्विनोलिनॉल सल्फेट (8-quinolinol sulfate) को  इंजेक्ट करें।
  • मार्च, जून और सितंबर के महीनों में छंटाई के बाद प्रत्येक पौधे के बेसिन में 15 ग्राम बाविस्टिन दें।
  • मार्च और सितंबर के दौरान रोगी पेड़ों पर 05% मेटासिस्टोक्स और o.3% जिंक सल्फेट के मिश्रण का छिड़काव करें।
  • प्रतिरोधी किस्में उगाएं जैसे- इलाहाबाद सफेदा, बनारसी, सुप्रीम आदि।

 

  1. Anthracnose (Gloeosporium psidii, Glomerella psidii)

  • विशेष रूप से मानसून के दौरान फलों पर पिन हेड के आकार के छोटे धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में, धब्बे आपस में मिलकर बड़े घाव का निर्माण करते हैं।

नियंत्रण

  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या डाइथेन Z -78 का 2% पर छिड़काव करें
  • प्रतिरोधी किस्म उगाएं जैसे सेब।
  • वैज्ञानिक प्रबंधन तकनीक का पालन करें।
  1. Guava fruit canker (Pestalotia psidii)

संक्रमण के कारण युवा अपरिपक्व फलों पर सूक्ष्म, भूरे या जंग के रंग का अखंड गोलाकार परिगलित कॉर्की कैंकेरस दिखाई देता है। त्वचा की सतह पर धब्बे उथले होते हैं।

नियंत्रण

  • 1% बोर्डो मिश्रण या डाइथेन Z -78 (0.2%) का छिड़काव करें
  • मृग बहार की फसल ही लें जो शुष्क सर्दियों के महीनों में पक जाए।

भौतिक विकार

  1. Bronzing in Guava

  • प्रभावित अमरूद के पेड़ की शाखा में पुरानी पत्तियों के अंतःस्रावी ऊतक लाल से बैंगनी लाल हो जाते हैं, पत्ती का पहला या दूसरा जोड़ा हरा रहता है।
  • बारिश के मौसम में यह गंभीर (80 %) तक होती हैं और सर्दियों के दौरान बहुत कम (10 %)।

कारण

  • P, K और Znकी कमी के कारण जटिल पोषण संबंधी विकार।
  • दक्षिणी कर्नाटक के अल्फिसोल (लाल मिट्टी) में अधिक।
  • ब्रोंजिंग के लिए खराब प्रबंधन और मिट्टी की कम उर्वरता के साथ मिट्टी की अम्लता को जिम्मेदार ठहराया जाता है।

प्रबंध

  • पादप स्वच्छता उपाय अपनाएं।
  • इलाहाबाद सफेदा जैसी प्रतिरोधी किस्में उगाएं।
  • मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों (NPK) और Zn और बोरॉन की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें।
  • अम्लीय मिट्टी पर अमरूद के बाग लगाने से बचें।
  • अत्यधिक पानी की कमी की स्थिति में रोपण से बचें।

References cited

  1. Commercial Fruits. By S. P. Singh
  2. A text book on Pomology, Vol,1. by T. K. Chattapadhya
  3. Tropical Horticulture, Vol.1, by T. K. Bose, S. K. Mitra, A. A. Farooqui and M. K. Sadhu

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