नींबू वर्गीय फलों के कीट, रोग और भौतिक विकार

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नींबू वर्गीय फलों के कीट, रोग और भौतिक विकार

फल विज्ञान

कीट नियंत्रण

  1. Lemon butterfly (Papilio demoleus) :-

  • कोमल पत्तियाँ किनारों से मध्य शिरा की ओर खाने से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।

  • यह अप्रैल और अगस्त-सितंबर में दिखाई देता है।

नियंत्रण

  • लार्वा को हाथ से इक्क्ठा कर नष्ट करें।

  • मैलाथियान का 05% या मिथाइल पैराथियान का 0.25% छिड़काव करें.

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2. Citrus leaf miner (Phylloenistis citrella)

  • युवा पत्तियों में खनन कर सर्पिल सुरंगों की गैलरी बनाता है बाद में पत्तियां अंदर की तरफ मुड़ (curl) हो जाती है

नियंत्रण

  • स्प्रे पैराथियॉन (025%) डाइमेक्रोन (0.1%) या रोगोर (0.1%)
  • मेटासिस्टोक्स (03%) जैसे कीटनाशक का छिड़काव करें

 

3. Citrus Psylla (Diaphornia citri)

  • साइट्रस साइला एक प्रकार की जूँ है जो युवा पत्तियों, कोमल टहनियों और फूलों की कलियों से रस चूसती है।
  • यह एक शहद जैसे चिपचिपे तरल का उत्सर्जन करता है जिसमें डाउनी मिल्डू (downy mildew) विकसित होती है।

नियंत्रण

  • डाइमेथोएट 10 ग्राम/पेड़ जैसे कीटनाशक का मिट्टी में प्रयोग कर और उसके बाद हल्की सिंचाई करें।
  • Dimecron (0.025%) या Parathion (0.025%) का स्प्रे
  • हाइमेनोप्टरस परजीवी Tetriasticus radiatus के माध्यम से जैविक नियंत्रण कर सकते है।

 

4. Stem and bark borers (Indarbela teraonis)

  • सुंडी तने और छाल में छेद करती है। छेद प्रवेश द्वार बड़ी मात्रा में रेशमी जाले से ढके पाए जाते हैं, जिनमें छोटे छोटे लकड़ी के टुकड़े होते है।

नियंत्रण

  • गैलरी से ग्रब अथवा कैटरपिलर को बाहर निकालें।
  • पेट्रोल, फॉर्मलडिहाइड, मिट्टी के तेल आदि जैसे फ्यूमिगेंट्स द्वारा सुरंगों को फ्यूमिगेट करें।
  • गंभीर रूप से प्रभावित शाखाओं को हटाकर पादप स्वच्छता उपाय अपनाएं।

 

रोग नियंत्रण

  1. Gummosis (Phytophthora, Diplodia natalensis)

  • प्रभावित पौधे के हिस्से, विशेष रूप से तना, शाखाएं, छाल पर दरारों के मध्य से गोंद बाहर निकालती हैं जो सूखने पर भूरे से काले रंग में बदल जाती हैं।

नियंत्रण

  • स्वस्थ छाल के कुछ हिस्से के साथ तेज चाकू से प्रभावित हिस्से को सावधानी से हटा दें। वहां मरक्यूरिक क्लोराइड (1:1000) जैसे कीटाणुनाशक के घोल के साथ भाग को अच्छी तरह से धोने के बाद पूरे कटे हुए हिस्से पर बोर्डो पेस्ट लगा देना चाहिए।
  • अच्छी जल निकासी की व्यवस्था करें और अधिक सिंचाई से बचें।
  • प्रतिरोधी रूटस्टॉक का प्रयोग करें।

 

  1. Pink disease (Pellicularia salmonicolour)

  • मानसून के बाद शाखाएं मुरझा जाती है और समय से पहले सूखने लगती है।
  • प्रभावित शाखाएं गुलाबी रंग के फंगस से ढकी होती हैं।
  • शाखाओं में अनुदैर्ध्य दरार और उसमें से गोंद निकलने लगती है।
  • उच्च वर्षा इस रोग के प्रसार के लिए अनुकूल है।

नियंत्रण

  • पौधे के प्रभावित हिस्से को काटकर जला दें।
  • कटे हुए सिरों पर बोर्डो पेस्ट लगाएं।
  • बोर्डो मिश्रण (5:5:100) का दो बार छिड़काव करें।

 

  1. Citrus canker (Xanthomonas citri) (bacterial)

  • सिट्रस लीफ माइनर द्वारा हमला किए गए पत्ते केंकर के रोगज़नक़ को आसान प्रवेश दे देते हैं।
  • कैंकर छोटे, गोलाकार, भूरे रंग के क्रेटर के रूप में पत्तियों, तनों और फलों पर दिखाई देता है

नियंत्रण

  • मानसून से पहले और बाद में प्रभावित टहनियों की छंटाई करें और उन्हें जला दें.
  • स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 500 से 1000 पीपीएम पर 20-25 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।
  • नियमित अंतराल पर 1% मेटासिस्टोक्स का छिड़काव करके लीफ माइनर को नियंत्रित करें।

 

  1. Tristeza virus disease (Corium vialoris)

  • सामान्य वृद्धि अवधि के दौरान प्रभावित पेड़ में नई वृद्धि का अभाव होता है। पेड़ क्लोरोटिक दिखाई देते है और बीमार पत्ते गिर जाते हैं और टहनियाँ मर जाती हैं।
  • प्रभावित पेड़ आमतौर पर बहुत फूल आते हैं। ट्रिस्टेजा वायरस, वाहक और कली दोनों से फैलता है लेकिन बीज के माध्यम से नहीं।
  • वाहक उष्णकटिबंधीय साइट्रस एफिड (Aphids citricidus) है

नियंत्रण

  • ट्रिस्टेज़ा रोधी मूलवृंत का उपयोग करें जैसे – जट्टी खट्टी, स्वीट लाइम, कर्णा खट्टा, सतगुड़ी, रंगपुर लाइम आदि।
  • कलिकायन के लिए वायरस मुक्त कलियों का उपयोग करें।

 

  1. Citrus greening

  • भारत में सर्वप्रथम फ्रेजर और सिंह द्वारा खोजा गया। रोगजनक रिकेट्सिया – जैसे – जीव (RLO) होता है।
  • वसंत वृद्धि की पत्तियाँ परिपक्वता तक पहुँचने के बाद, जस्ता की कमी के समान क्लोरोटिक पैटर्न में विकसित हो जाती हैं। पत्तियों पर, हरे रंग के बिंदु या द्वीप पीले रंग की पृष्ठभूमि के पर दिखाई देते हैं।
  • बे मौसमी पुष्पन और बाद में उल्टा सूखा के लक्षण दिखाई देते हैं।
  • प्रभावित फलों का रंग सबसे पहले नीचे के सिरे पर नारंगी रंग का हो जाता है, गोंद के पॉकेट दिखाई देते है।
  • ग्राफ्टिंग द्वारा, और सिट्रस साइला जैसे कीड़ों के माध्यम से फैलता है।

नियंत्रण

  • इंजेक्शन के माध्यम से टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड लगाएं (6-10 ग्राम / पेड़)
  • प्रभावित भाग की छँटाई करें।
  • रोगोर (03%) का स्प्रे करें।

 

भौतिक विकार

  1. फलों का फटना (Fruit cracking)

फलों का फटना दो प्रकार से होता है-

  1. अनुदैर्ध्य (Radial – अधिक सामान्य)
  2. अनुप्रस्थ (Transverse)
  • एस्परजिलस, अल्टरनेरिया, पेनिसिलियम आदि द्वारा द्वितीयक संक्रमण भी आमतौर पर हो जाता है।
  • फलों का फटना जलवायु परिस्थितियों में अचानक परिवर्तन और पानी के कमी की स्थिति के कारण हो सकता है।

नियंत्रण उपाय

  • समय समय पर हल्की सिंचाई करते रहें।
  • फलों की तुड़ाई नियमित करते रहें।
  • फसल को पोटाशियम दें।

 

  1. उल्टा सुखना (Citrus decline or Die – back)

  • प्रभावित पेड़ मुरझा जाता है, पत्तियों पर विरल धब्बे, और बीमार दिखाई देती है। पत्तियाँ पीली होकर झड़ जाती हैं।
  • अत्यधिक फूल और कम फलन होता है।

कारण

  • कैल्शियम कार्बोनेट की कठोर परत का होना
  • लवणीय मिट्टी होना
  • अत्यधिक सिंचाई
  • सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे एन, पी, के और एमजी और सूक्ष्म पोषक तत्वों बोरान, जस्ता, तांबा, लोहा आदि की कमी।
  • मूलवृंत और सांकुर के बीच की संगतता।
  • बाग का गलत प्रबंधन।
  • कीटों और रोगों की घटना (ट्रिस्टेज़ा, डी ग्रीनइंग)

नियंत्रण

  • उचित जल निकासी की व्यवस्था करें
  • अधिक सिंचाई से बचें
  • खाद और उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा दें ।
  • स्वच्छ खेती करें
  • हमेशा प्रतिरोधी मूलवृंत और रोग मुक्त कलि का उपयोग करें
  • रोग कीटों के नियंत्रण के लिए समय पर पौध संरक्षण उपाय करें।

 

  1. Granulation

  • रस की थैली अथवा रेशे सख्त, बड़े और अपारदर्शी भूरे रंग के हो जाते है।
  • लुगदी (गूददे) का घनत्व बढ़ जाता है, रस की थैलियों में कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम और पोटेशियम की अधिकता होती है।
  • घुलनशील कार्बोहाइड्रेट और कार्बनिक अम्ल कम रह जाते है।

कारण

  • उच्च आर्द्रता
  • उच्च और निम्न तापमान
  • पेड़ की उम्र (पुराने पेड़ों की तुलना में युवा पेड़ों में ग्रैन्यलैशन अधिक होता हैं)
  • अधिक नाइट्रोजन और अधिक सिंचाई के कारण
  • फल का आकार (बड़े फलों में ग्रैन्यलैशन अधिक होती है)
  • मूलवृंत भी इसे प्रभावित करता है।

नियंत्रण

  • सिंचाई को नियंत्रित करके अधिक नमी से बचें।
  • 18 से 20 किलो चूने को 450 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • 2,4-डी का 12 पीपीएम का छिड़काव करें
  • जस्ता (zinc) और तांबे (copper) का छिड़काव करें।

 

  1. Fruit drop

  • फसल पकने से पहले फलों का गिरना आम समस्या
  • मौसमी और रेड ब्लड किस्म में फल गिरने का खतरा अधिक होता है
  • वालेंसिया में फल गिरने का खतरा कम होता है

फल गिरने का कारण

A) फल गिरने के भौतिक कारण

  • तना बिंदु पर abscission परत का निर्माण हो जाना
  • वृद्धि नियामकों जैसे ऑक्सिन, साइटोकिनिन जिबरेलिन्स आदि का असंतुलन।
  • आवश्यक पोषक तत्वों की अधिकता या कमी।
  • प्रतिकूल मौसम की स्थिति
  • कृषि क्रियाएं

नियंत्रण उपाय

  • अगस्त के महीने में 2, 4-डी (20 पीपीएम) का छिड़काव करें
  • पोषक तत्वों की अनुशंसित मात्रा दें
  • बेहतर कृषि क्रियाओं का सही समय पर सही तरीके से पालन करें

B) रोग के कारण फलों का गिरना (Pathological Fruit Drop)

  • Alternaria citri और Colletrotrichum gliosporiodes के कारण
  • फल के स्टाइलर सिरे पर फंगस के हमले के बाद स्टाइलर अंत सड़ जाता है

नियंत्रण उपाय

  • फल बनने (अगस्त) के समय कॉपर कवकनाशी का छिड़काव करें और इसे 3 सप्ताह के अंतराल पर दोहराएं।

References cited

  1. Commercial Fruits. By S. P. Singh
  2. A text book on Pomology, Vol,1. by T. K. Chattapadhya
  3. Tropical Horticulture, Vol.1, by T. K. Bose, S. K. Mitra, A. A. Farooqui and M. K. Sadhu

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